कक्षा में कोशिश का महत्व: क्यों प्रयास ही सफलता की कुंजी है? |

जो व्यक्ति कुछ सीखता है, वह छात्र होता है | छात्र होने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती है | छात्र की श्रेणी में बालक, वयस्क और बुजुर्ग कोई भी आ सकता है, बस वह कुछ न कुछ सीख रहा हो | दोस्तों आज के इस ब्लॉग में हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि छात्र को अपने जीवन में सफल होने के लिए कोशिश करनी चाहिए | एक अध्यापक होने के कारण, कक्षा में विद्यार्थी किन – किन स्थितियों में पाठ को समझ नहीं पाते है ? पाठ समझने के लिए , उन्हे क्या करने का प्रयास करना चाहिए ? किस तरह वे अपना ध्यान पाठ को समझने में लगा सकते है, इन्ही कुछ मुद्दों पर आधारित मेरा ये ब्लॉग है | यदि आप लोगों को यह अच्छा लगे तो लाइक, कमेन्ट और शेयर जरूर करें | 

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती , कोशिश करने वालों की हार नहीं होती | ये लाइन राष्ट्र कवि सोहन लाल द्विवेदी की है जो उनकी श्रेष्ट कविताओं में से एक है | क्योंकि बिना कोशिश के कुछ भी हासिल नहीं होता है | जो कोशिश करते है, वही लोग अपनी मंजिल तक पहुंचते है | दोस्तों उक्त लाइन के आधार पर, आज का हमारा यह ब्लॉग उन छात्रों के लिए है, जो पढ़ाई से ऊबते है | उनका कक्षा में उनका मन नहीं लगता है | 

कोशिश करने वाले छात्र की हार नहीं होती 

परिचय 

अधिकांश छात्र अपने समय का सही सदुपयोग नहीं करते है | वे समय का प्रभावी उपयोग नहीं कर पाते है | यदि कक्षा में पीरियड फ्री हुआ, तो उनको लगभग एक घंटे का समय मिल जाता है | इस समय का वे सिर्फ दुरुपयोग करते है | इसके लिए कैंटीन में चले जाएंगे |अपने मोबाईल पर समय बिताते है | जबकि इसका सदुपयोग पुस्तकालय में जाकर, कुछ नया पढ़ कर किया जा सकता है | इस दौरान अपने पाठ को दोहराएँ | यह भी एक विकल्प हो सकता है | 

किन्तु वे ऐसा नहीं करते है | इसका कई कारण हो सकता है | जैसे- छात्र इसके लिए पहले से कोई योजना नहीं बनाते है | दोस्ती के चक्कर में फंस कर दूसरे कार्यों मे लग जाते है | यहाँ हम छात्रों के लिए कुछ ऐसे ही महत्त्व पूर्ण बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे,  जो छात्रो के लिए बहुत ही महत्त्व पूर्ण होगा | वे अपने समय का सही से सदुपयोग कैसे करे ?   

कक्षा उबाऊँ क्यों लगता है ? 

अध्यापक कक्षा में एक मिनट में लगभग 50 शब्दों का प्रयोग करते है, फिर भी छात्र इन 50 शब्दों को पूरी तरह से अपने ध्यान में नहीं ले पाते है | जब एक मनुष्य साधारण बात चीत करता है , उस समय प्रति मिनट 1000 शब्द ग्रहण कर सकता है | जबकि पढ़ाई के दौरान कक्षा में छात्र को लगभग 50 शब्द ही बताए जाते है | फिर भी उनका मस्तिष्क उन बातों को पूरी तरह से ग्रहण नहीं कर पाता है | इसका कारण यह है कि जब छात्र कक्षा में  होते है | तब उनके मस्तिष्क में दूसरी और भी बाते साथ – साथ चल रही होती है | जिसका प्रभाव यह होता है कि उनके मस्तिष्क का ध्यान, अध्यापक द्वारा बोले गए शब्दों पर नहीं जाता है | 

खिड़की या दरवाजे के पास बैठना 

अक्सर जो छात्र खिड़की या दरवाजे के पास बैठते है | उनकी आंखे खिड़की या दरवाजे से बाहर की ओर कुछ और ही तलासती है | उनका मस्तिष्क मौज – मस्ती के बारे में सोचने लगता है | इस बात की जानकारी अध्यापक के पास बिल्कुल नहीं पहुँच पाता | कुछ समय बाद पीरियड समाप्त हो जाता है | अध्यापक और बच्चा दोनों घर चले जाते है | बच्चा यह जान ही नहीं पाता कि वह कक्षा में क्या पढ़ा ? इसलिए इस बात कि बहुत जरूरत है कि छात्रों को जो पढ़ाया जा रहा है | उसे   सही तरीके से कैसे सीखना चाहिए ? इसके लिए छात्रों के लिए कुछ ऐसे बिन्दु है, जिन पर कार्य करके छात्र अपने पढ़ाई को और व्यवस्थित कर सकते है | 

कक्षा में जाने से पहले की तैयारी  

महाभारत में महान धनुर्धर अर्जुन के बारे में एक घटना मिलती है | अर्जुन सुबह में अपने गुरु के उठने से काफी समय पहले उठ जाते थे | फिर अंधेरे मे अपने धनुष विद्या का अभ्यास शुरू कर देते थे | इसी कारण से वे धनुष विद्या में सर्वश्रेष्ट धनुर्धर बन पाते है | ऐसा करके वे अन्य लोगों से पहले ही अपने आने वाली कक्षा की तैयारी कर चुके होते थे | जो उनको महान धनुर्धर बनाता है | 

ठीक यही प्रक्रिया आज के छात्रों पर भी लागू होता है | यदि वे कक्षा में पढ़ाए जाने वाले पाठ को पहले से ही पढ़कर जाते है,  तो कक्षा में पढ़ाए जाने पर छात्र उस पाठ को दूसरी बार पढ़ रहा होगा | इससे छात्र के लिए उस पाठ को समझना आसान हो जाता है | साथ ही साथ परीक्षा की दृष्टि से उसकी तैयारी भी हो जाती है |  

यहाँ बिल्कुल स्पष्ट है कि कक्षा में पढ़ाए जाने वाले पाठ को एक बार पहले से समझ लेना चाहिए | उस पाठ में जो ना समझ में आए,  उसे लिखकर नोट्स बना लेना चाहिए | पहले से तैयारी कर लेने से कक्षा में पढ़ाए जाने पर , छात्र पाठ को आसानी से समझ सकता है | 

कक्षा के पहले पंक्ति में बैठने का फायदा  

हमारे समय में कक्षा में पहली पंक्ति में बैठने वाले छात्रों को उबाऊ कहा जाता है | जबकि पीछे के पंक्ति में बैठने वालों को स्मार्ट कहा जाता था | लेकिन पीछे बैठने में मुझे एक समस्या महसूस होती थी | पिछले पंक्ति मे बैठने से , आगे की पंक्ति में बैठे लोग जो करते थे,  उससे मेरा ध्यान भटकता था | इसलिए मुझे आगे की पंक्ति में बैठना सही लगता था | क्योंकि आगे बैठने से हमारे और अध्यापक के बीच मे किसी प्रकार की बाधा नहीं होती थी | ब्लैक बोर्ड को सही तरीके से देख पाते थे | 

अध्यापक के सामने होने के कारण,  हम इधर – उधर देख भी नहीं पाते थे | पाठ पर सम्पूर्ण ध्यान लगा रहता था | दरवाजे और खिड़कियों के पास बैठने से भी ध्यान भटकता था | इसलिए मेरा प्रयास रहता था कि इनसे अलग बैठूँ | इसलिए मै कक्षा में आगे या बीच की पंक्ति में बैठना पसंद करता था | जो हमारे लिए फायदे मंद था | इसलिए मै कक्षा में आगे बैठने के पक्ष में हूँ | 

संदेहों को दूर करें 

जो छात्र भयवश या संकोच वश प्रश्न नहीं पूछते है | उनके लिए कहना चाहूँगा कि कक्षा में प्रश्न पूछने वाला,  छात्र कुछ समय के लिए मूर्ख समझा जा सकता है | किन्तु जो प्रश्न नहीं पूंछता है ,  वह हमेशा के लिए मूर्ख रहेगा | प्रश्न पूछने से कोई मूर्ख नहीं होता है | लेकिन अवसर मिलने पर प्रश्न न पूछना मूर्खता है | इसलिए संदेहों को दूर करने लिए कक्षा में प्रश्न पूछना चाहिए | 

हर एक अध्यापक के अपने अलग – अलग नियम होते है | इसलिए उनके नियमों को गहराई से समझे , फिर उनके नियमानुसार प्रश्न पूछना चाहिए | जैसे कुछ अध्यापक ऐसे होते है, जो पहले पाठ को कम्प्लीट करना चाहते है , उसके बाद प्रश्नोत्तर की कक्षा लेते है | इसलिए अध्यापक के नियमों के अनुसार ही अपने संदेह को दूर करे | 

गति को सही करे 

कभी – कभी अध्यापक के पढ़ाने की गति, छात्र के समझने के हिसाब से तेज होती है | ऐसी स्थिति में छात्र को अध्यापक से विनम्रता पूर्वक पाठ पढ़ाने की गति को धीरे करने का निवेदन करना चाहिए | एक अध्यापक के पूरी कक्षा को पढ़ाने के लिए गति निर्धारित करना,  एक मुश्किल काम होता है | किन्तु अधिकतर अध्यापक छात्र के निवेदन के हिसाब से बदलाव करने के लिए तैयार हो जाते है | बस उन्हे इस बात का भरोसा होना चाहिए कि छात्र ईमानदारी से पढ़ना चाहता है | 

बातुनी छात्र से दूर रहे   

छात्र को अपने बातुनी मित्रों और सहपाठियों को स्पष्ट रूप से बता देना चाहिए | वे कक्षा में बात नहीं करेंगे | यदि किसी को बात करनी हो,  तो कक्षा के बाद बात करने का समय मिल सकता है | उस समय बात कर सकते है | इसके बाद भी यदि छात्र को लगता है कि उसके साथी नहीं सुधर रहे है |तब अध्यापक से बात करके बैठने का स्थान बदल लेना चाहिए | बातुनी मित्रों से दूरी बनाने में ही छात्र का फायदा है | 

विद्यार्थी समय के पाबंद बने  

कक्षा में नियमित समय पर पहुंचे | हो सके तो प्रयास करें कि कक्षा के समय से पहले पहुंचे | देर से आने वाले छात्रों को अध्यापक पसंद नहीं करते है | क्योंकि ऐसे लोगों के कारण कक्षा की पढ़ाई बाधित होती है | देर से आने वाले छात्रों का कक्षा के अन्य छात्रों के साथ ताल – मेल नहीं बैठ पाता है | उनका हमेशा कोई न कोई विषय छूट ही जाता है | जो अच्छे छात्र बनने के लिए उचित नहीं है | 

अध्यापक को प्रभावित करे 

किसी भी छात्र के लिए अध्यापक के सामने अच्छा प्रभाव बनाने का प्रयास करना चाहिए | इससे छात्र को हमेशा एक बेहतर अनुभव प्राप्त होता है | जो छात्र अपनी प्रतिभा से, पढ़ाई या किसी अन्य कला से अध्यापक को प्रभावित कर पाते है |  उनको कई सारे अडवांटेज प्राप्त हो जाते है | एक बात हमेशा ध्यान रहे कि अध्यापक भी मनुष्य ही है , उन्हे भी प्रभावित किया जा सकता है | इसलिए छात्र को अध्यापक के पसंद या नापसंद के बारे में जान लेना चाहिए | 

हर अध्यापक अलग – अलग विचार के होते है | कुछ अध्यापक किसी भी आयोजन में खुलकर हिस्सा लेना चाहते है , तो कुछ शांत रहना पसंद करते है | कुछ अध्यापकों को परीक्षा के उत्तर पुस्तिका में प्रश्नों के उत्तर छोटे और विषय से संबंधित ही पसंद होते है जबकि कुछ निबंध की तरह लंबे और विस्तारपूर्वक उत्तर पसंद करते है | अध्यापक की पसंद के बारे में पता कर लेने से छात्र उसका फायदा ले सकते है | 

गृहकार्य 

आमतौर पर छात्र के लिए गृह कार्य एक ऐसी चीज है, जिससे वे नफरत करते है | क्योंकि स्कूल या कॉलेज से आने के बाद उसको पूरा करने के लिए अलग से समय निकालना पड़ता है | छात्र को मिलने वाला गृह कार्य अधिकांशतः उसी पाठ से संबंधित होता है, जो उस दिन कक्षा में पढ़ाया गया होता है | गृह कार्य करने के परिणाम स्वरूप छात्र को अच्छे से याद हो जाता है | इसलिए गृहकार्य को सही समय पर करना,  छात्र के लिए फायदे मंद होता है |

क्योंकि पढ़ाई में किसी विषयवस्तु को सीखने के 24 घंटे के अंदर दोहरा लेना चाहिए | इससे उस विषयवस्तु का कम से कम 80% भाग याद हो जाता है | छात्र भूलता नहीं है | गृह कार्य भी छात्र के लिए यही काम करता है | कक्षा मे छात्र जो कुछ भी पढ़ा वह गृह कार्य के माध्यम से दोहराता है | इसलिए गृहकार्य में लापरवाही नहीं करना चाहिए | 

विद्यार्थी कक्षा ना छोड़े 

विद्यार्थी  के लिए हर कक्षा, उस ईंट के समान है, जिसके जुडने से इमारत की पूरी दीवाल बनती है | यदि छात्र कक्षा छोड़ रहा है, इसका मतलब कि उसकी पढ़ाई रूपी दीवाल कमजोर हो रही है | हर कक्षा किसी इमारत के एक हिस्से के समान होता है | इसलिए इसके किसी भी भाग को नहीं छोड़ना चाहिए | यदि किसी कारण वश छात्र,  किसी दिन कक्षा में नहीं पहुँच पाता है | तब उस दिन पढ़ाए गए, पाठ के बारे में पूरी जानकारी ले लें | अपने किसी दोस्त या सहपाठी से उस पाठ के बारे में समझ ले | उसके नोट्स तैयार कर लें क्योंकि कहा जाता है कोशिश करने वालों की हार नहीं होती है |

निष्कर्ष 

कक्षा में कोशिश करने वालों की हार नहीं होती | इस बात को समझना बेहद महत्वपूर्ण है। मेहनत, संकल्प और धैर्य किसी भी विद्यार्थी के सफलता की कुंजी हैं। कोशिश करने से ही व्यक्ति अपनी कमियों को पहचानता है | उन्हें दूर करने के उपाय ढूंढता है। चाहे परिणाम तत्काल न मिले | लेकिन लगातार प्रयास करने से सफलता अवश्य मिलती है। जो विद्यार्थी असफलता से नहीं डरते है | निरंतर प्रयास में लगे रहते हैं | वे ही अंततः जीतते हैं। कक्षा में जब छात्र मेहनत करते हैं, तो न केवल वे विषयों में निपुण होते हैं, बल्कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है। इस प्रकार, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती है | क्योंकि उनकी लगन, परिश्रम और दृढ़ता ही,  उन्हें मंजिल तक पहुंचाती है। इसलिए, हर छात्र को प्रयास करना चाहिए और कभी हार नहीं माननी चाहिए। यही असली सफलता की पहचान है।

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