भारतीय सेना के मात्र 120 सैनिक पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए |

दोस्तों Ind vs Pak 1971 के इस चौथे भाग में हम भारतीय सेना और पाकिस्तानी सेना के बीच  बैटल ऑफ़ लोंगे वाला के बारे में जानेंगे | तो चलिए शुरू करते है – 1971 में भारत और पाकिस्तान का युद्ध केवल बांग्लादेश तक ही सीमित नहीं था | पाकिस्तान ने युद्ध की शुरुआत पश्चिमी मोर्चे से की थी, यानी कि भारत के गुजरात और राजस्थान सीमा के पास के इलाकों से | वैसे तो भारत ने यहां पर अपनी सेना का अच्छा खासा इंतजाम किया था |

लेकिन जब पाकिस्तान ने कुछ महीनो तक यहाँ हमला नहीं किया तो भारत ने सेना के कई सारी टुकड़ियों को यहां से वापस बुला लिया गया था | 4 दिसंबर की रात को पाकिस्तान सेना के ब्रिगेडियर तारिख मिर के साथ करीब 3000 पाकिस्तानी सैनिक 40 टैंकों के साथ जैसलमेर के लोंगे वाला पोस्ट की ओर बढ़ रहे थे |  वहीं दूसरी तरफ भारत के इस तरफ केवल 120 सैनिक थे | अब भारतीय सेना ने यह बात समझ ली थी कि वे पाकिस्तानी सेना के सामने बिना सूझबूझ के जीत नहीं सकते हैं |

इतना ही नहीं भारतीय सेना के कमांडर को उसे समय यह सुझाव भी दिया गया था कि आप लोंगे वाला की पोस्ट को छोड़कर पीछे हट जाएं | जिससे 120 जवानों की जान बचाई जा सके , लेकिन मेजर कुल दीप सिंह ने इस बात के लिए बिल्कुल मना कर दिया | दूसरी तरफ इंडियन एयर फोर्स भी रात के समय भारतीय सेना की कोई मदद नहीं कर सकती थी | क्योंकि एयरफोर्स के पास उस समय जिस तरह के लड़ाकू विमान थे, वे केवल दिन के समय ही उड़ाये जा सकते थे |

लेकिन इसके बावजूद भी भारतीय सेना ने पीछे हटने से साफ इनकार कर दिया था | अब सवाल यह खड़ा हो रहा था कि 3000 सैनिकों और 40 टैंक के साथ आगे बढ़ रही पाकिस्तानी सेना का आखिरकार 120 सैनिक मुकाबला करें , तो कैसे करें ? उस समय भारतीय सेना के पास लोंगे वाला पोस्ट पर केवल तीन टैंक माइंस थे | जो एक तरह के विस्फोटक माइन होते हैं और जिसके किसी टैंक के नीचे आने पर ब्लास्ट हो जाता है |

भारतीय सेना ने लोंगे वाला पोस्ट के सबसे आगे के हिस्से पर इन तीनों टैंक माइंस को लगा दिया | उसके बाद उन्होंने झूठी माइंस बिछा दी | अब जब पाकिस्तान सेना के टैंक जैसे ही शुरुआती माइंस पर आए , तो एक-एक करके तीन टैंक वही तबाह हो गए | इससे घबरा कर पाकिस्तान सेना के कमांडर ने अपनी सेना को तुरंत रुक जाने का आदेश दिया | रात को करीब 3:00 बजे तक पाकिस्तान की सेना उन झूठे  लैंड माइंस को डिफ्यूज करती रही | इससे भारतीय सेना को काफी समय मिल चुका था |

लेकिन अभी भी सुबह होने में कुछ घंटे बाकी थे | सुबह होने के बाद ही भारतीय एयर फोर्स,  सेना की मदद के लिए आ सकती थी | झूठी माइंस के अलावा भारतीय सेना ने यहां पर एक और तकनीक अपनाई थी | वह यह था कि  भारतीय सेना के सैनिक एक लंबी लाइन में एक दूसरे से काफी दूरी बनाकर अलग-अलग दिशाओं से फायरिंग करने लगे | ऐसे में पाकिस्तानी कमांडर को लगा कि शायद उनको जो खुफिया जानकारी मिली थी कि भारत के सिर्फ 120 सैनिक ही लोंगे वाला पोस्ट पर मौजूद हैं,  वह गलत है |

क्योंकि 120 सैनिक इतनी अलग-अलग जगह से फायरिंग कैसे कर रहे हैं ?  यह बात पाकिस्तान की सेना को बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रही थी | पाकिस्तान ने अपने पश्चिमी मोर्चे पर काफी भारी मात्रा में सेना इकट्ठी कर रखी थी | क्योंकि पाकिस्तान के राष्ट्रपति को यह बात पता थी कि बांग्लादेश में उनकी जीत सिर्फ तभी संभव है जब वह भारत के पश्चिमी हिस्से पर कब्जा कर पाएंगे | बाद में इस हिस्से को छोड़ने के नाम पर वह भारत से बांग्लादेश की इस युद्ध से बाहर निकालने की शर्त रखेंगे |

लेकिन वह इसके लिए अपनी सेना को तैयार नहीं कर पाए थे | पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय सेना के 120 जवानों ने पाकिस्तान के 3000 सैनिकों को एक बेहतरीन रणनीति द्वारा खदेड़ दिया था | उस रात सुबह होने के बाद एयर फोर्स ने भी बचे हुए काम को पूरा कर दिया | पाकिस्तान सेना  को उस पोस्ट को छोड़कर वापस भागना पड़ा था | भारत ने साल 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को पहला झटका दे दिया था |

लेकिन कई सारे विशेषज्ञों का यह भी मानना था कि भारत को यहां पर थोड़ी और जल्दी करनी चाहिए थी |  भारत की इंटेलीजेंस को भी इस बात की जानकारी होनी चाहिए थी कि भारी संख्या में पाकिस्तानी सैनिक लोंगे वाला पोस्ट की ओर आगे बढ़ रहे हैं | पर एक सच यह भी है कि अगर वे 120 सैनिक उस दिन पीछे हट जाते,  तो शायद पाकिस्तान सेना सुबह तक जैसलमेर जिले तक पहुंच जाती | एक बार अगर वे जैसलमेर तक पहुंच जाते,  तो उसके बाद में भारतीय सेना के लिए उन्हें वापस खदेड़ना बहुत मुश्किल होता |

वही इस हमले में भारत के केवल दो जवान शहीद हुए थे | और पाकिस्तान के 200 से भी अधिक सैनिक मारे गए थे | इसके अलावा पाकिस्तान सेना को 36 टैंकों का भी नुकसान उठाना पड़ा था | इस युद्ध में भारतीय सेना को केवल एक एंटी टैंक गन और पांच बी एस एफ के ऊंटों के मरने का नुकसान उठाना पड़ा था | पर इस जीत के बाद पश्चिमी मोर्चा पर पाकिस्तान ने वापस कभी भी हमला करने की कोशिश नहीं की |

उन्होंने सोचा कि पश्चिमी मोर्चे को कमजोर मानना, उनकी एक बहुत बड़ी गलती थी | उसकी वजह से उन्हें आगे युद्ध में भी यह गलती बहुत भारी पड़ने वाली थी | मगर युद्ध अभी भी बाकी था | पाकिस्तानी नौसेना और वायुसेना बांग्लादेश में भारतीय सेना से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार थी | हम आगे की कहानी में इसी के बारे में बात करेंगे |


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