दोस्तों Ind vs Pak 1971 सीरीज के छठवें भाग में हम बात करेंगे रुस और भारतीय सेना के साथ के बारे में | तो चलिए शुरू करते है – 1971 के भारत और पाकिस्तान के युद्ध से पहले अमेरिका और सोवियत रूस के बीच पहले से ही कोल्ड वॉर चल रहा था | कोल्ड वॉर का मतलब होता है कि जब दो देश एक दूसरे से आमने-सामने नहीं लड़ते हैं किन्तु वे किन्हीं दूसरे देशों को अपनी मदद देकर उनको जीत दिलाने में सहायता करते हैं |
उस समय अमेरिका और सोवियत रूस दोनों ही यह चाहते थे कि दुनिया भर में दोनों देश अपनी-अपनी विचारधारा को सबसे आगे रखें | और तो और अमेरिका ऐसा चाहता था कि दुनिया के सभी देश पूंजीवाद का अनुशरण करें | वही सोवियत रूस का यह कहना था कि दुनिया के सभी देशों को साम्यवाद को मनाना चाहिए |
इससे पहले कि हम आगे बात करें, हम यह समझ लेते हैं कि आखिरकार पूंजीवाद और साम्यवाद ये दोनों आखिरकार होते क्या है ?आपको बता दें कि पूंजीवाद जिसे केपीटलाइज्म भी कहते हैं | यह किसी देश को चलाने की वह व्यवस्था होती है जिसमें लोगों को बहुत ज्यादा आजादी होती है | हर कोई अपना व्यापार कर सकता है | जितना चाहे उतना पैसा कमा सकता है |
वहीं दूसरी ओर साम्यवाद जिसे कम्युनिज्म भी कहते है, में व्यक्ति के पास आजादी थोड़ी कम होती है | साथ ही साथ ऐसे देशों में लोगों को खुद की बड़ी कंपनियां खोलने की इजाजत नहीं होती है | उदाहरण के लिए ऐसे समझे कि रूस एक कम्युनिस्ट अर्थात साम्यवादी देश है और वहीं अमेरिका केपीटलाइज्म अर्थात पूंजीवादी देश है |
भारत और पाकिस्तान के युद्ध के पहले ही सोवियत रूस ने पाकिस्तान को यह चेतावनी दी थी कि उसे इस युद्ध को शुरू नहीं करना चाहिए | वही इस युद्ध में पाकिस्तान के साथ में कई सारी बड़ी शक्तियां खड़ी थी | जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन शामिल थे | इन दो देशों के अलावा पाकिस्तान को चीन, सऊदी अरब, जॉर्डन, फ्रांस, इंडोनेशिया, ईरान, तुर्की, लीबिया और श्रीलंका का समर्थन मिला हुआ था |
वहीं इसके विपरीत भारत के साथ सिर्फ और सिर्फ सोवियत रूस था | जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान के जवाबी हमले के लिए बड़ा हमला करना शुरू किया, तो घबराकर पाकिस्तान ने अमेरिका से मदद मांगी | क्योंकि उसे समय अमेरिका और पाकिस्तान के संबंध बहुत ही ज्यादा मजबूत थे |
ऐसे में पाकिस्तान के मदद मांगने पर अमेरिका और ब्रिटेन ने भारत को रोकने के लिए अपनी नौ सेना की एक बड़ी टुकड़ी भारत की ओर रवाना कर दी | 10 जहाजों का यह बड़ा नौ सेना का समूह तेजी से भारत की ओर बढ़ रहा था | उस समय दुनिया की नौ सेना में अमेरिका सबसे ताकतवर नौ सेना में से एक था | इसकी क्षमता परमाणु हथियारों को भी चलाने की थी | अमेरिका के साथ-साथ यूनाइटेड किंगडम ने भी अपना एयरक्राफ्ट कैरियर एच एम एस ईगल भारत की ओर भेजना शुरू कर दिया |
इस तरह से भारतीय सेना को यह लग रहा था कि उसे तीन तरफ से हमला झेलना पड़ सकता था | जहां अरब सागर की ओर से यूनाइटेड किंगडम का हमला | बंगाल की खाड़ी में अमेरिकी नौ सेना का हमला | जमीन पर तो पाकिस्तान के साथ जंग चल ही रही थी | इसके साथ-साथ उसे समय इस बात की भी काफी संभावना जताई जा रही थी कि चीन भी भारत के ऊपर हमला कर सकता है | तब उस समय भारत ने रूस को अपनी दोस्ती के वादों को याद दिलाते हुए मदद करने के लिए संदेश भेजा |
रूस ने तुरंत एक्शन लेते हुए 13 दिसंबर को अपनी एक बहुत बड़ी न्यूक्लियर वॉरशिप ब्रिटेन और अमेरिका के खिलाफ लाकर खड़ा कर दिया | उसने सभी देशों को इस बात की खुले आम चेतावनी दी थी कि अगर किसी को भी भारत पर हमला करना है, तो उससे पहले उसे रूस के साथ जंग लड़नी होगी | रूस के सख्त कदम उठाने की वजह से अमेरिका और ब्रिटेन दोनों ने वहां से वापस जाना ही बेहतर समझा |
अमेरिका यह बात अच्छी तरह से जानता था कि रूस के पास इस समय खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है | रूस में कम्युनिस्ट सरकार है, तो सरकार को देश की जनता के सवालों का ज्यादा जवाब भी नहीं देना पड़ता है | दूसरी तरफ अमेरिका में लोकतंत्र था | जिसमें अगर कुछ भी गड़बड़ होती है तो जनता उस नेता को सत्ता से हटा देती | उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन थे | उन्होंने इस खतरे को न मोल लेने का फैसला लिया |
उन्हें पता था कि अगर उन्होंने अमेरिका को इस युद्ध में धकेला, तो उनकी सत्ता कभी भी वापस नहीं आएगी | वहीं ब्रिटेन ने जब यह देखा कि सोवियत रूस भारत के साथ इतनी मजबूती के साथ समर्थन में खड़ा है, तो उसने भी इस युद्ध से पीछे हटने का फैसला ले लिया | अब रूसी न्यूक्लियर वॉर शीप चारों ओर से भारत की सुरक्षा में लगे हुए थे |
इधर भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में लगातार अपने काम पर लगी हुई थी | पाकिस्तान के पास अब उम्मीद की कोई किरण नहीं थी, क्योंकि उन्होंने अमेरिका के दम पर इस युद्ध की शुरुआत की थी | मगर अब वही अमेरिका उनके साथ नहीं था |
उस समय पाकिस्तान यह बिल्कुल भी नहीं समझ पा रहा था कि उसे अपना अगला कदम किस तरह से उठाना चाहिए ? साल 1971 की जंग के बाद भारत और रूस के संबंध काफी गहरे होते गए | दोनों देशों के बीच बड़ी-बड़ी रक्षा सौदे हुए है | आज भी भारत और रूस एक दूसरे के करीबी मित्र बने हुए हैं |
भारत ने भी फिलहाल रूस के उसे एहसान को चुका ही दिया | रूस ने भारत के ऊपर सन 1971 के युद्ध के दौरान जो सहायता किया था | उसके बदले भारत ने भी साल 2022 में शुरू हुई , यूक्रेन और रूस की जंग में भारत ने रूस की आलोचना करने से साफ मना कर दिया |
जहां दुनिया भर के देश आज रूस पर बड़े – बड़े लगा रहे हैं | वहीं भारत आज भी रूस से जरूरी सामान खरीद रहा है | इससे हमें यह पता चलता है कि किस तरह से भारत और रूस हमेशा एक दूसरे के साथ थे ? और अभी दुनिया के बाकी देश उन्हें साथ रहता हुआ नहीं देखना चाहते हैं |
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