History of Indian Princely states | भारतीय रियासतों का इतिहास

दोस्तों आज के इस ब्लॉग पोस्ट में हम History of Indian Princely states भारतीय रियासतों के इतिहास के बारे में जानेंगे | दोस्तों , सरदार वल्लभ भाई पटेल का प्रसिद्ध विचार है जब जनता एक हो जाती है,  तब उसके सामने निर्दयी  से निर्दयी  शासक  भी नहीं टिक सकता  | इसलिए जात-पात और  ऊँच – नीच के भेदभाव को भूलाकर सब एक हो जाइए  | पटेल जनता  को शक्तिशाली  बनाना चाहते थे और भारत से हर तरह का भेदभाव खत्म करना चाहते थे |  इसलिए उन्होंने भारत को एकजुट करने का काम शुरू किया | एक तरफ तो सरदार  वल्लभ भाई पटेल छोटी-छोटी रियासत को मिलाकर एक बड़ी राज्य  बनाने का काम शुरू किया था,  तो दूसरी तरफ इन राज्यों में लोकतांत्रिक व्यवस्था को लागू करना भी शुरू  कर दिया गया था |  एक उदाहरण की तरह देखें तो 1947 में उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के  39 छोटी – छोटी रियासतों को उड़ीसा व मध्य प्रदेश में जोड़ दिया था |

Article 370

आर्टिकल 370 के बारे में जाने : आर्टिकल 370 पर फैसला

भारतीय रियासत में सबसे बड़ा रियासत  ग्रेटर राजस्थान यूनियन था |  जो 30 मार्च 1949 को बनकर तैयार हुआ था |  यह भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक और प्रशासनिक इकाइयों  में से एक था |  जिनमें 15 पुरानी राजपूत रियासत शामिल थी | बड़ौदा की बड़ी रियासत 1 मई  1949 को बंबई  जिसे हम अब मुंबई के नाम से जानते हैं,  में  शामिल हो गई थी |

दक्षिण तटीय राज्य  रावन कोर पहली  रियासत थी ,  जिसने उस समय भारत के साथ इंस्ट्रूमेंट ऑफ एसोसिएशन यानी विलय पत्र पर साइन करने से मना कर दिया था | और कांग्रेस की नेशनल लीडरशिप पर सवाल उठाया था | इंडियन नेशनल कांग्रेस ब्रिटिश गवर्नमेंट के समय साल 1885 में स्थापित  की गई थी |

ऐसा कहा जाता है कि सर सी पी अय्यर ने यू.  के.  के सरकार  के साथ गुप्त संधि कर ली थी | यू. के.  की सरकार  स्वतंत्र त्रवन कोर के पक्ष  में थी | क्योंकि इस क्षेत्र  में मोनोजाइनिक खनिज बहुत अधिक पाया जाता था | यह ब्रिटेन को परमाणु हथियार के दौड़ में काफी आगे ले जा सकता था  | जब जुलाई 1947 में केरल की सोशलिस्ट पार्टी की एक सदस्य ने सी. पी. अय्यर   पर जानलेवा हमला  किया , उसके बाद वे  भारत में शामिल होने के लिए तैयार हो गए थे |

30 जुलाई 1947 को त्रावन कोर भारत में शामिल हो गया |  वहीं जोधपुर भी भारत में शामिल होने के लिए तैयार नहीं थे |  जोधपुर के राजा हिंदू थे और वहां की ज्यादातर जनसंख्या भी हिंदू ही थे | लेकिन राजा की इच्छा  पाकिस्तान में शामिल होने की थी |

माना जाता है कि युवा और अनुभवी राजा हनुमंत  सिंह ने अनुमान लगाया था कि पाकिस्तान के साथ उनके  रियासत की सीमा  लगने के कारण वह पाकिस्तान से ज्यादा अच्छे तरीके से डील कर सकते  है | जिन्ना ने  महाराजा  को अपनी सभी मांगों  की एक सूची  बनाकर एक ब्लैक पेपर पर हस्ताक्षर  करके दे दिया था |

इसमें इन्होंने सेना और किसानों के सहयोग  से हथियार  बनाने और एक्सपोर्ट करने के लिए कराची पोर्ट तक फ्री एक्सेस देने का ऑफर भी दिया था | जब पटेल को इस बारे में पता चला था तो उन्होंने राजा से सीधे संपर्क किया और सभी फायदे  देने के साथ ही उनके ऑफर को स्वीकार  करने की भी बात कही थी |  पटेल ने राजा को यकीन दिलाया कि उनके पास हथियार  को एक्सपोर्ट करने की परमिशन होगी |  जोधपुर को काठियावाड़ से ट्रेन के जरिए जोड़ा जाएगा | साथ ही अकाल के दौरान अनाज और भोजन भी उपलब्ध  करवाया जाएगा | 11 अगस्त 1947 को महाराजा हनुमंत  सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर  किए थे |  इस तरह जोधपुर भारतीय गणराज्य में शामिल हुआ था |

पटेल के सामने एक और बड़ी समस्या थी , भोपाल को भारतीय गणराज्य में शामिल करने की | भोपाल ने भी स्वतंत्र रहने की घोषणा  कर दी थी |  यहां रहने वाले लोगों में अधिकतर  जनसंख्या हिंदू थी |  और यहां एक मुस्लिम नवाब हमीद उल्ला   खान शासन करते थे | वह मुस्लिम लीग के नजदीकी मित्र एवं कांग्रेस के बहुत बड़े विरोधी थे |  उन्होंने माउंटबेटन को लिखा था कि वह एक  स्वतंत्र राज्य  चाहते हैं,  किंतु माउंटबेटन ने उन्हें जवाब देते हुए लिखा था कि कोई शासक अपने नजदीकी अधिराज्य से भाग नहीं सकता है |

जुलाई 1947 को जब अधिकांश राजाओं ने भारत में शामिल होने का निर्णय लिया तो भोपाल के नवाब भी विलय पत्र  पर हस्ताक्षर कर दिए थे |  इस तरह भोपाल कूच बिहार त्रिपुरा और मणिपुर केन्द्रीय प्रशासन के वश  में आ गए थे | नवंबर 1949 तक जूनागढ़ हैदराबाद और कश्मीर को छोड़कर सभी रियासत भारत में शामिल हो गए थे | पटेल ने अपनी स्किल के दम पर इस कठिन काम को कर दिखाया | उनकी तारीफ करते हुए लॉर्ड माउंटबेटन ने कहा था राजसी मंत्रालय के अध्यक्ष और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ सरदार पटेल के प्रयासों से एक ऐसी स्कीम बनाई गई,  जो मुझे रियासतों  को भारत गणराज्य के लिए एक समान फायदे मंद लगी |

पटेल के समझाने का परिणाम  यह रहा कि इन तीन रियासतों  को छोड़कर बाकी सभी रियासत ने अपनी इच्छा से भारत में शामिल होना स्वीकार कर लिया | छोटी-छोटी रियासत को एक कर इंडियन यूनियन यानी भारतीय संघ नाम दिया गया  |  15 अगस्त 1947 तक हैदराबाद कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर बाकी सभी भारत के रियासत भारत गणराज्य संघ में शामिल हो गये थे |  अंत में निराशा और मजबूर होकर सरदार पटेल ने उनके विरुद्ध कठोर एक्शन लेने का निर्णय  लिया |

दोस्तों अब हम बात करेंगे कि किस तरह सरदार पटेल ने जूनागढ़ को भारत गणराज्य में शामिल होने के लिए तैयार किया ?

जूनागढ़ पश्चिम भारत के सौराष्ट्र की एक बहुत बड़ी राज्य थी |  यहां के मुस्लिम नवाब महावत खान जूनागढ़ को पाकिस्तान में शामिल करना चाहते थे |  काठियावाड़ की इस रियासत में सत्ता सौपाने से एक दिन पहले पाकिस्तान में शामिल होने के लिए साइन कर दिए थे | इस राज्य  में रहने वाले ज्यादातर लोग हिंदू थे |  और वे पाकिस्तान में शामिल नहीं होना चाहते थे  | उन्होंने नवाब के इस निर्णय  को लेकर जगह – जगह विरोध प्रदर्शन किया | जब जूनागढ़ में हालात बिगड़ने लगे , तो नवाब अपनी जान बचाने के लिए पाकिस्तान भाग गए |

नवंबर 1947 में भारतीय सेना जूनागढ़ पहुंची और उसे अपने कब्जे में ले लिया |  इस बात की जानकारी जब माउंट बेटन को लगी तो वह काफी नाराज हुए और इसके बाद वहां जनमत संग्रह करवाया गया | जिसमें  90% से ज्यादा लोगों ने भारत में शामिल होने की अपनी इच्छा जाहिर की थी |

जूनागढ़ के मुस्लिम दीवान ने फिर से को कानून लागू करने के लिए 9 नवंबर 1947 को इंडियन गवर्नमेंट से निवेदन की थी |  जूनागढ़ रियासत के प्रतिनिधि की इच्छा से इसे काठियावाड़ के सम्मिलित राज्य  में 20 फरवरी 1948 को शामिल कर लिया गया था |

इसके बाद सरदार पटेल के सामने हैदराबाद को भारत में शामिल करना एक बड़ा चैलेंज था | वहां की  भी जनता  भारत में शामिल होना चाहती थी | लेकिन वहां के निजाम उस्मान अली खान असम जा सप्तम भारत में शामिल होने के लिए तैयार नहीं थे | पाकिस्तान के नेताओं ने उन्हें इस बात के लिए उकसाया था  कि वे भारत में शामिल नहीं होने के लिए प्रोटेस्ट करें |

भौगोलिक दृष्टि से देखें तो हैदराबाद देश के केंद्र में स्थित था | पटेल हैदराबाद की राज्य  भौतिक महत्व को बहुत अच्छे से समझते थे |  इसलिए इसे हर हाल में भारत में शामिल करना चाहते थे |नीति अनुसंधान केंद्र के सीनियर फेलो श्रीनाथ राघवेंद्र ने द प्रिंट में लिखे  आर्टिकल के अनुसार  पटेल यह मानते थे कि कश्मीर से ज्यादा महत्व  हैदराबाद का है |

1947 के अंत तक वह कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल करने का विचार रखते थे  |  बशर्तें पाकिस्तान हैदराबाद की निजाम से डायरेक्ट भारत में शामिल होने के लिए बात करता  | राघवन  ने लिखा था कि पटेल ने जूनागढ़ पर अधिकार के बाद पब्लिक स्टेटमेंट दिया था कि अगर वह हैदराबाद के लिए मानेंगे,  तो हम कश्मीर के लिए सहमत हो सकते थे |

ऐसा हो नहीं पाया |  पाकिस्तान ने नरमी  दिखाई और निजाम कन्फ्यूजन की स्थिति में आ गए | वहाँ की जनता ने भारत में शामिल होने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया | जब ये साफ हो गया कि निजाम भारत में शामिल होने के लिए तैयार नहीं हो रहा है | तो 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना हैदराबाद में प्रवेश कर गई और निजाम को सपर्पण करना पड़ा  | नवंबर 1949 में हैदराबाद को भारत में शामिल किया गया |

दोस्तों कश्मीर को छोड़कर बाकी सभी रियासत को भारतीय गण राज्य में शामिल करने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी | हमारे नेक्स्ट एपिसोड में हम बात करेंगे किस  स्ट्रेटजी के साथ पटेल ने कश्मीर को भारत में शामिल किया |  और उस समय वहां का राजनीतिक और भौगोलिक दृश्य क्या था ? और क्यों भारत का हिस्सा होने के बाद भी कश्मीर को विशेष राज्य  का दर्जा दिया गया था ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए हमसे जुड़े रहे , मिलते है अगले ब्लॉग पोस्ट में , तब तक

जय हिन्द

जय भारत

आर्टिकल 370 के बारे में शुरू से पढे : https://www.hanswahinieducation.com/article-370-in-jammu-and-kashmir/

 


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