1971 के युद्ध के बाद भारत पाकिस्तान के हालात |

दोस्तों Ind vs Pak 1971 सीरीज के इस आठवें भाग में हम युद्ध के बाद के हालात के बारे में बात करेंगे | तो चलिए शुरू करते है – 16 दिसंबर साल 1971 को भारत और पाकिस्तान के बीच का युद्ध आखिरकार खत्म हो गया | दोनों देशों ने इस युद्ध में अपने कई सारे सैनिकों की कुर्बानी दी थी | लेकिन पाकिस्तान को यह युद्ध बहुत भारी पड़ा | जहां 9000 से भी ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक इस युद्ध में मारे गए | 93000 पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सेना ने बंदी बनाकर रखा था | जिनको समर्पण कराकर पाकिस्तान को वापस कर दिया गया था |

वहीं भारत के करीब 3000 सैनिक इस युद्ध में शहीद हुए थे | साल 1971 के इस युद्ध के बाद पाकिस्तान की आधी से ज्यादा जनसंख्या खत्म हो गई थी | क्योंकि बांग्लादेश की जनसंख्या उस समय पाकिस्तान की जनसंख्या का करीब आधा हिस्सा बनाती थी | वहीं पाकिस्तान सेना का एक तिहाई हिस्सा भारत की कैद में था |

उस समय पाकिस्तान सेना की कुल क्षमता करीब तीन लाख सैनिकों की थी | उन में से 93 हजार सैनिक भारत ने बंदी बनाकर रखा था |  इसके चलते भारत की इस युद्ध के बाद साउथ एशिया में सैन्य और राजनीतिक प्रभुत्व काफी हद तक बढ़ गई | बाद में भारत ने पश्चिमी देशों के साथ भी समझौता कर लिया | जिसकी वजह से जो देश पहले भारत के खिलाफ थे | बाद में भारत के समर्थन में आ गए |

उस समय भारत के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी युद्ध के ठीक बाद यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस के दौरे पर गई | इससे इन दोनों देशों के साथ-साथ अमेरिका के साथ भी भारत के रिश्ते बेहतर होते गए | साथ ही साथ पाकिस्तान ने यूनाइटेड नेशंस में जितने भी प्रस्ताव लिए, वे सब के सब नियम फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम के द्वारा रोक लिए गए |

इस युद्ध के बाद दुनिया को यह पता लग गया था कि भारत विश्व राजनीति में कितनी अहम भूमिका निभाता है | भारत को भी यह बात समझ में आ गई थी कि अब दुनिया के साथ नजर से नजर मिलाने का समय आ चुका है | इसीलिए भारत ने ठीक 3 साल बाद,  साल 1976 में एक न्यूक्लियर टेस्ट किया और भारत ऐसा इसलिए कर पाया था, क्योंकि सन 1971 के युद्ध के बाद पूरे साउथ एशिया में भारत के खिलाफ बोलने वाला कोई भी नहीं था |

भारत में इन सभी देशों के साथ बहुत ही अच्छे संबंध स्थापित कर लिए थे | इतना ही नहीं पड़ोसी देशों में बांग्लादेश, श्रीलंका और बाकी के छोटे-छोटे देश भी भारत के साथ खड़े थे | बांग्लादेश के बनने के बाद लाखों बांग्ला देशी नागरिक जो भारत आए थे | उन्हें वापस भेज दिया गया |

जिस दिन भारत ने यह युद्ध    जीती उस दिन इंदिरा गांधी ने देश की पार्लियामेंट में कहा था,  ढाका आजाद देश की एक आजाद राजधानी है | हम बांग्ला देश के लोगों को उनकी जीत की मुबारकबाद देते हैं | हर देश जिसे मानवाधिकारों की चिंता है | वह इस बात को जरूर मानेगा कि यह जीत इंसान को अपने आप को आजाद करने के लिए बहुत जरूरी थी |

सन 1971 में भारत और पाकिस्तान की यह युद्ध पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा सबक था | तब से ही पाकिस्तान लगातार भारत के भी उसी तरह से टुकड़े करना चाहता है | जिस तरह से बांग्लादेश टूटकर पाकिस्तान से अलग हुआ था | क्योंकि इस युद्ध    से उनकी इकोनामी पूरी तरह से गिर चुकी थी | दुनिया भर में पाकिस्तान की इज्जत को भी काफी गहरा नुकसान पहुंचा था |

यही से पाकिस्तान की राजनीति में मिलिट्री का रोल बहुत ज्यादा बढ़ गया | इसी वजह से पाकिस्तान में लगातार मिलिट्री कू होने लगे थे | मिलट्री कू में देश को सेना उस समय संभालती है,  जब कोई भी नेता जनता की समस्याओं को सुलझाने के लिए मौजूद नहीं होता है | सेना को जिस हिसाब से ठीक लगता है, वह देश को संभालती है | पाकिस्तान के लिए यह नीति हमेशा से ही बहुत ही खराब रही है | इस युद्ध के बाद दुनिया में एक और बात सब देशों को पता लग गया कि टू  नेशन थिअरी अर्थात दो राष्ट्र सिद्धांत क्यों काम की नहीं है ?

क्योंकि पहले कई लोग यह कहते थे कि एक देश के दो अलग-अलग हिस्से एक दूसरे से बहुत ज्यादा दूरी पर मौजूद हो सकते हैं | जैसाकि पाकिस्तान और बांग्लादेश | लेकिन जब बांग्लादेश टूटकर अलग हो गया,  तो भारत को यह बात समझ में आ चुकी थी कि इस तरह की व्यवस्था ज्यादा सफल नहीं हो सकती है | पाकिस्तानी नेताओं को भी यह लगा था कि शायद मुस्लिम आबादी का ज्यादा होना,  बांग्लादेश के नागरिकों को उनके साथ जोड़कर रखेगा |

लेकिन यह महज उनकी गलतफहमी थी | बांग्लादेश के लोगों ने अपनी संस्कृति को अपने धर्म से बढ़कर देखा | उन्होंने पाकिस्तान के द्वारा थोपी गई उर्दू भाषा को पूरी तरह से नकार दिया |  पाकिस्तान सेना के लिए यह युद्ध और भी ज्यादा भयानक साबित हुई | इसके अलावा पाकिस्तानी मिलिट्री का एक तिहाई हिस्सा भारत ने बंदी बनाकर रखा था | उनकी नेवी पहले से आधी हो चुकी थी और उनकी एयरफोर्स का एक चौथाई हिस्सा भारतीय सेना ने खत्म कर दिया था |

युद्ध के बाद पाकिस्तान सेना के जनरल एक दूसरे पर युद्ध में हुई हार का इल्जाम लगाने लगे | साथ ही साथ वह इस बात का भी आरोप लगाने लगे कि वे बांग्लादेशी नागरिकों पर अत्याचार किसने किया है ? इसमें सबसे बड़ा नाम लेफ्टिनेंट जनरल टिक्का खान का लिया जाता है | टिक्का खान को पूर्वी पाकिस्तान का गवर्नर भी बनाया गया था |  उसके बाद में बंगाली नागरिकों के कत्ले आम के लिए उन्हें बंगाल का कसाई भी कहा गया |

पाकिस्तान सेना और पाकिस्तान सरकार दोनों को यह बात समझ में आ चुकी थी कि वे अपने देश के किसी भी हिस्से के साथ भेदभाव करके, उसे अपने साथ नहीं रख सकते हैं | सभी लोगों का एक धर्म को मनाना,  उन्हें देश के साथ जोड़े रखने के लिए काफी नहीं है | इसीलिए पाकिस्तान में एक विशेष संगठन का निर्माण हुआ | उस का काम यह था कि वह पाकिस्तान के टैक्स को सभी राज्यों में बराबर हिस्से में बांटे |

भारत की ओर से इतने खतरनाक हमले को देखने के बाद पाकिस्तान को इस बात का डर था कि  भविष्य में हो सकता है कि भारत फिर से पाकिस्तान को युद्ध में हराए | इसीलिए उन्होंने न्यूक्लियर प्रोग्राम भी शुरू कर दिया | इस तरह से साल 1977 में पाकिस्तान ने भी अपना पहला न्यूक्लियर वेपन डिजाइन किया |

1971 में एक नए देश बांग्लादेश का निर्माण हुआ | आजादी के बाद बांग्लादेश दुनिया का चौथा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला मुस्लिम देश बन गया | शेख मुजीबुर रहमान को पाकिस्तान की जेल से निकाल कर वापस ढाका भेज दिया गया था | 19 जनवरी सन 1972 को वह बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति बने और बाद में बांग्लादेश के प्रधानमंत्री भी बने |

2 जुलाई सन 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच एक मीटिंग हुई | यह मीटिंग भारत के शिमला शहर में रखी गई थी | वहां पर दोनों देशों ने शिमला एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किया | शिमला एग्रीमेंट के तहत पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने बांग्लादेश को एक आजाद देश माना | भारत ने 93000 पाकिस्तानी सैनिकों को वापस पाकिस्तान भेजने का वादा किया |

साथ ही साथ भारत ने 13000 किलोमीटर स्क्वायर का वह  इलाका भी पाकिस्तान को वापस दे दिया |  जिसे भारतीय सेना ने युद्ध के दौरान पाकिस्तान से कब्जा किया था | हालांकि तब भी भारत ने कुछ हिस्से अपने पास रख लिए थे जो करीब 1000 किलोमीटर स्क्वायर के दायरे में फैला हुआ है | इसमें लद्दाख के आसपास के कुछ जरूरी हिस्सा शामिल है |

हालांकि आज भी लोग यह कहते हैं कि इंदिरा गांधी पाकिस्तान से उस समय पूरा कश्मीर ले सकती थी | क्योंकि पाकिस्तान की हालत उस समय बहुत ज्यादा खराब थी | लेकिन कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यह एग्रीमेंट एक सफलता थी | क्योंकि इतिहास में जब भी किसी एक देश ने दूसरे देश के ऊपर बहुत ज्यादा कठोर शर्त रखी है तब – तब दूसरे देश ने युद्ध  करना बंद न करके ज्यादातर युद्ध करना शुरू किया है |

इसका सबसे बड़ा उदाहरण जर्मनी का लिया जाता है | पहले विश्व युद्ध के बाद जर्मनी पर बहुत कठोर शर्तें थोप दी गई थी | इन शर्तों का हवाला देते हुए बाद में हिटलर ने दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत की थी | भारत यह बिल्कुल भी नहीं चाहता था कि वह लंबे समय तक केवल पाकिस्तान के साथ युद्ध में उलझा रहे | इसीलिए उसने पाकिस्तान के साथ ऐसा समझौता किया जिससे कि पाकिस्तान अपना सबक भी सीख ले और भविष्य में भारत के ऊपर वापस हमला करने की भी ना सोच सके |


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