POK में भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के 42 घंटे की कहानी |

दोस्तों इस सीरीज के ग्यारहवे भाग में हम हमारी सेना द्वारा POK में आतंकियों पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में जानेंगे कि तैयारी पूरी हो जाने के बाद हमारी सेना ने किस तरीके से इस हमले को अंजाम दिया ?  तो चलिए शुरू करते हैं अपना भाग ग्यारह-  POK में सर्जिकल स्ट्राइक के लिए सारी तैयारियां पूरी हो गई थी | जो कमांडोज इस मिशन में शामिल थे, उन्हें इस ऑपरेशन को करने के लिए हरी झंडी दे दी गई | अब हमारी बारी थी, शुरू में जो दो टीमें बनाई गई थी | टीम ए और टीम बी , उन दोनों टीमों से और भी बहुत सारी छोटी-छोटी टीम बनाई गई | बनाई हुई उन सभी टीमों को तीन भागों में बांटा गया |

पहले भाग में रिकी टीम को रखा गया | रिकी टीम का काम था कि हमले से चार से पांच दिन पहले POK में चुपके से जाएँ, जिन टारगेट पर हमला करना था,  वहां की सारी जानकारीयाँ जैसे कि वहां कितने आतंकवादी हैं?  उनके कितने पोस्ट है ? आसपास कोई पाकिस्तानी सेना का पोस्ट तो नहीं है | POK में आतंकियों का डेली रूटीन क्या है? वे किस तरह का हथियार वह इस्तेमाल करते हैं?  इन सब के बारे में पता करना तथा साथ ही साथ वहां के रास्तों के बारे में भी पता करना था |

दूसरे भाग में अटैक टीम को रखा गया था | इनका काम आतंकियों पर जोरदार हमला करके,  उन्हें मौत के घाट उतारना था | तीसरे भाग में सपोर्ट टीम को रखा गया था | सपोर्ट टीम का काम हमला करने वाली टीम यानी कि अटैक टीम को हर प्रकार से सपोर्ट देना था | चाहे वह हथियार हो,  कमांडोज हो, या मेडिकल हो | साथ ही साथ इनका काम हमला करने वाली टीम को सही सलामत वहां से निकलना भी था |

मिशन की शुरुआत कर दी गई | रेकी टीम हमला करने के 5 से 6 दिन पहले और POK में स्थित टारगेट के पास तक चले गए | जहां हमला करना था | लेकिन वहां तक जाना इतना आसान नहीं था | दुश्मन के जासूस हर तरफ फैले हुए थे | यही सबसे बड़ा चैलेंज था | आतंकवादी घने जंगलों से होकर भारत में घुसते थे | इसलिए वे की टीम ने इन्हीं जंगलों से होकर पी ओ के में जाने का फैसला लिया | इन जंगलों में उन्हें आतंकवादियों से सामना भी करना पड़ सकता था |

इसलिए उन्होंने अपने वर्दी के ऊपर पेड़ और पत्तियों की छाल पहन ली थी |  ताकि इस जंगल में वह आतंकियों की नजरों से बच सके | धीरे-धीरे बिना शोर मचाए वे आगे बढ़ने लगे | लेकिन खतरा अभी कम नहीं हुआ था | यह जंगल भारत के हिस्से वाले कश्मीर से होकर पूरे पी ओ के तक फैला था | कोई इन जंगलों के रास्ते भारत में घुसपैठ ना कर सके | इसलिए भारतीय सेना ने भारत के हिस्से वाले जंगलों में जमीन के अंदर लैंड माइंस बिछा रखी थी | जो हल्के से दबाव पर फट सकते थे |

इन सैनिकों को इन  लैंड माइंस का एग्जैक्ट लोकेशन का पता भी नहीं मालूम  था | ज्यादा समय हो जाने पर ये माइंस अपनी जगह से खिसक भी जाते हैं | खतरा तो चारों तरफ से था | हर एक कदम फूँक – फूँक  कर रखना था | एक गलत कदम से सीधे मौत से सामना,  लेकिन सालों की हार्ड ट्रेनिंग और मेहनत काम आई | और सभी रिकी टीम के जवान पी ओ के में घुसने में सफल हो गए | अब वे दुश्मन के इलाके में थे| जहां पर उनकी मदद कोई नहीं कर सकता था | अब कुछ भी हो सकता था |

लेकिन यह इंडियन आर्मी है , जो मौत को अपने सर पर बांधकर चलती है | इंडियन आर्मी के जवान धीरे-धीरे अपने टारगेट की तरफ POK के इलाके में बढ़ रहे थे | इनका काम था,  दुश्मन के ऊपर नजर रखना | उनसे जुड़ी सारी इनफार्मेशन को इकट्ठा करना और रास्तों का पता करना | ताकि अटैक टीम आकर इन दुश्मनों पर हमला कर सके | और वहां से सुरक्षित निकल सके | रेकी टीम का काम दुश्मन पर हमला करना नहीं था | फिर भी अगर दुश्मन इन्हें देख ले , तो दुश्मन को मार गिराने और खुद को बचाने के लिए उनके पास वह सारे हथियार थे जो अटैक टीम के पास थे |

इस वजह से इन जवानों की पीठ पर रखे गए बैग का वजन 40 से 45 किलोग्राम हो गया था | इस वजन के साथ जंगल के दुर्गम रास्तों पर चलना आसान नहीं था | जवान POK के जंगल की झाड़ियां को साफ करते हुए,  रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ रहे थे | तभी इन्हें एक आवाज सुनाई देती है | यह आवाज ऊपर से आ रही थी | जवानों को यह आवाज सुनाई देती है | यह आवाज ऊपर से आ रही थी | जवानों ने जब ऊपर देखा तो ठीक उनके ऊपर एक पाकिस्तान ड्रोन उड़ रहा था | जवान फौरन जहां थे वहीं रुक गए | यह ड्रोन जंगल की निगरानी के लिए आया दुशमन की ओर से आया हुआ था |

जवानों ने अपनी वर्दी के ऊपर पेड़ों की छाल और पत्तियां लगा रखी थी | जंगल में चारों तरफ पेड़ ही पेड़ थे |  जिसकी वजह से वे ड्रोन की नजर में आने से बच गए | ड्रोन के जाने के लगभग 15 मिनट बाद जवानों ने फिर चलना शुरू किया | लगभग 10 घंटे चलने के बाद सारी रेकी टीम अपने-अपने टारगेट तक पहुंच गई | अब इनका काम छुपाकर , बिना दुश्मन की नजर में आए,  बिना कुछ खाए पिए,  लगातार 24 घंटे तक दुश्मन के ऊपर नजर रखना था | जो शायद इतना आसान नहीं होने वाला था |

क्योंकि अगर किसी ने भी इन्हें देख लिया तो मौत से सामना तय था | दिन हो गया था | दिन में पकड़े जाने का खतरा बढ़ गया था | जवानों ने अपनी -अपनी सुरक्षित पोजीशन ले ली | कुछ जवान टारगेट के लगभग 300 मीटर तक पहुंच गए | वहाँ वे खुद को पेड़ों और पत्तियों से ढक लिया | दूरबीन से इन आतंकवादियों के ऊपर नजर रखी जाने लगी | जवानों ने अपना कैमरा निकाला | उन आतंकवादियों का वीडियो बनाना शुरू कर दिया |

हर एक छोटी से छोटी जानकारी वीडियो में रिकॉर्ड की जाने लगी | इन्हीं जानकारी के माध्यम से अटैक टीम अपना प्लान बनाने वाली थी | जो इन आतंकियों पर इस प्लान के हिसाब से हमला करने वाली थी | इसलिए सही और सटीक जानकारी का होना बहुत जरूरी था | लेकिन खतरा रेकी टीम के ऊपर भी था | दिन में निगरानी रखना बहुत ज्यादा खतरनाक हो गया था | दिन हो जाने पर आतंकवादी अपने बंकरों से निकलकर चारों तरफ घूमने लगे थे | डर इस बात का भी था कि कोई आतंकवादी इन्हें देख ना ले | फिर भी हमारे बहादुर सिपाही उस खतरे वाली जगह पर भी अपना काम मुस्तैदी से कर रहे थे |

हर एक छोटी जानकारी जैसे कि वहां कितने लोग थे ? दिन में वे आतंकवादी क्या करते थे ? उनके पास कितने हथियार थे ? वे किस तरीके के हथियार का इस्तेमाल करते थे ? वे हथियार कहां रखते थे ? सारी जानकारी रिकॉर्ड होने लगी | दिन में आतंकवादीयों को कैरम खेलते,  ताश खेलते  और गप्पे लगाते हुए  हमारे जवानों ने देखा |  तभी अचानक कुछ गाड़ियां आकर रुकी | उन गाड़ियों से कुछ आतंकी उतरने लगे | आतंकियों के लॉन्च पैड पर भीड़ बढ़ाना शुरू हो गई थी | जो कि इस बात की तरफ इशारा कर रहा था कि भारत में घुसने और हमला करने की कोई नई साजिश रच दी गई थी |

वे आतंकी कुछ ही दिन के अंदर POK से निकलकर  भारत में घुसने का प्रयास करने वाले थे | शायद उनमें से कुछ सफल भी हो जाएंगे | धीरे – धीरे  दिन ढलने लगा और थोड़ी देर में शाम हो गई | सारे आतंकी अपने-अपने पोस्ट और बंकर के अंदर चले गए | लगभग रात के 10:00 बजे तक सन्नाटा पसर गया | चारों तरफ घना अंधेरा था | भारतीय जवान भी थोड़ी देर के लिए रिलैक्स हो गए | कुछ खाने-पीने के लिए अपना-अपना बैग खोलने लगे | तभी अचानक आतंकियों ने गोली चलाना शुरु कर दिया | भारतीय जवानों को समझ में नहीं आया कि आखिर हो क्या रहा है ? क्या आतंकवादीयों ने उन्हें देख लिया था ? नहीं, ये गोलियां जवानों की तरफ नहीं चलाई जा रही थी |

इसलिए भारतीय जवानों ने इन गोलियों का जवाब नहीं दिया | चुपचाप जहां थे वहां बैठे रहे | थोड़ी देर में गोलियां चलनी बंद हो गई | रेकी टीम समझ गई थी कि यह उनके डेली रूटीन का हिस्सा था | आतंकियों को जिस तरफ से हमला होने का खतरा था, आतंकवादी उस तरफ डेली रात को 2 से 3 राउंड फायर करते और फिर सो जाते थे | सुबह होने वाली थी |  इसी के साथ रेकी टीम का काम भी खत्म होने वाला था |

रेकी की टीम ने सारी जानकारियां ले ली थी | अब उन्हें यहां से निकलना था | रेकी टीम उस रास्ते से वापस आई जिस रास्ते से गई थी | हमारे जवान लगभग 42 घंटे बाद अपने देश में वापस आ गए | वापस आकर उन्होंने सारी जानकारियां इस मिशन से जुड़े ऑफिसर और जवानों के साथ शेयर की | उनकी दी हुई जानकारी के हिसाब से एक पूरा प्लान तैयार किया गया | उसे प्लान के हिसाब से अब जाने की बारी सपोर्ट टीम की थी |

सपोर्ट टीम ने किस तरीके से अपने काम को पूरा किया? अटैक टीम ने किस तरीके से इस मिशन को आखरी अंजाम तक पहुंचाया ?  इसके बारे में बात करेंगे अगले भाग में,  तो मिलते हैं अगले भाग में ,,,,,,,,,,,,,,,,,


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