धारा 370 कब और किसने लगाई थी | कश्मीर मे कैसे आया Article 370 ?

दोस्तों जम्मू कश्मीर मे Article 370 और 35- A का जन्म क्यों और कैसे हुआ ? आज के इस ब्लॉग पोस्ट मे हम सब इसके बारे में विस्तार से जानेंगे | दोस्तों  कश्मीर से कन्याकुमारी तक हम सब एक हैं | अनेकता में एकता ही भारत की विशेषता है |  यह सुनकर हम सब बड़े हुए हैं | हमें देश की एकता  और प्रामाणिकता पर पूरा यकीन भी है | हम सब चाहते हैं कि हमारी देश के हर नागरिक को समानता का अधिकार और अवसर मिले | लेकिन फिर क्या वजह थी कि भारत का हिस्सा होने के बाद भी कश्मीर में अलग नियम और कानून थे |

इस एपीसोड में हम इसी बारे में बात करने जा रहे हैं |  दोस्तों 26 अक्टूबर 1947 का दिन जम्मू कश्मीर की  इतिहास  में बेहद महत्त्व है और इसकी वजह भी हमें पता है वह वजह Article 370 और 35- A थी | इसी दिन महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर को भारत में शामिल करने के लिए  भारत के  विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे |

Article 370

इसी दिन कश्मीर भारत का हो गया था |  गवर्नर जनरल माउंट बेटन ने 27 अक्टूबर को इसके लिए आज्ञा दे दी थी | उसे समय इसमें ना तो जम्मू कश्मीर राज्य के लिए विशेष अधिकार  की कोई मांग थी, और ना ही इसमें कोई और शर्त रखी गई थी | राजा हरि सिंह के विलय पत्र पर हस्ताक्षर  करने के बाद पूरा जम्मू कश्मीर जिसमें पाकिस्तान के गलत तरीके से कब्जा किया हुआ क्षेत्र  भी शामिल है |  भारत का अभिन्न अंग बन गया था |

सभी भारतीय रियासतों को एक जुट करने के साथ ही भारत के संविधान को बनाने के काम भी प्रारंभ कर दिया गया था | सबसे पहले प्रांत, फिर केंद्र और इसके बाद  रियासती राज्यों के लिए संविधान बनाना शुरू हुआ था | उस समय रियासतों के राजाओं को संविधान कमेटी ने यह कहा था कि आप मूल स्तर पर अपना संविधान  बना लीजिए क्योंकि केंद्र में अभी संविधान बन रहा है ऐसे में हम इसे बाद में जोड़ लेंगे |

सब रियासत ने अपने फायदे देखते हुए संविधान बनाना प्रारंभ कर दिया और यही से परेशानियों की शुरुआत हो गई थी | इसके बाद सरदार पटेल ने कहा कि हम रियासत प्रावधानों कोई अलग नहीं है,  और इसीलिए हम इसमें किसी तरह का फर्क नहीं रखना चाहते हैं | हम चाहते हैं कि दोनों के कानून एक समान हो | इसके बाद संविधान कमेटी ने रियासत और राज्य दोनों के ही कानून मिलकर एक ही तरह के कानून जोड़े दिए गए थे और इन्हें सभी रियासत को भेजा गया था |

सभी रियासत के राजाओं ने इस पर विचार किया और इसके लिए आज्ञा दे दी थी |  इन रियासत के संविधान में सभी राजाओं ने लिखा कि मैं मेरे वंशज और मेरे बाद जो उत्तराधिकारी और राज्य में आने वाला शासन करने वाला कोई भी व्यक्ति और यहां की जनता वह सभी भारत के संविधान  को गोद लेना स्वीकार करते हैं |

यहां भारत का संविधान लागू होता है  | इसका मतलब यह था कि अगर रियासत में राजा है तो वह संविधान के द्वारा ही है | अगर संविधान उसे राजा नहीं मानता है तो वह राजा नहीं है, यानी देश में लोकतंत्र की शुरुआत होने के बाद राजा और प्रजा जैसा कुछ नहीं बचा था |  इसके बाद आम जनता ही असली राजा बन गई थी |

लेकिन 25 नवंबर 1949 को एक ऐसी घटना घटी जिसने कश्मीर की  इतिहास  को पूरी तरह बदल दिया | दरअसल उस दिन पार्लियामेंट में गोपाल स्वामी अयांगार ने कहा कि हम कश्मीर को एक नया आर्टिकल देना चाहते हैं | अयांगार  संविधान सभा की खोज समिति के सदस्य राज्यसभा के नेता और भारत की प्रथम  काउंसिल में मिनिस्टर थे |

वे सन 1937 से 1943 तक जम्मू कश्मीर के प्राइम मिनिस्टर भी रहे थे | जब उनसे कश्मीर को नया आर्टिकल देने की वजह पूछी गई,  तो उन्होंने कहा कि आधे कश्मीर पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया है और इस राज्य के साथ कई समस्या जुड़ी हुई है | आधे लोग यहां फंसे हुए है,  और आधे लोग पाकिस्तान के कब्जे वाले में है | इस राज्य के हालात  दूसरे राज्यों  की तुलना में अलग है |  ऐसे में यहां एक नया आर्टिकल की जरूरत होगी,  क्योंकि जम्मू कश्मीर में पूरा संविधान लागू  नहीं किया जा सकता है |

इसके लिए अस्थायी रूप से आर्टिकल 370 लागू करना होगा | जब वहां की परेशानी खत्म हो जाएगी तो इसे हटा दिया जाएगा | सबसे कम समय में डिबेट के बाद यह आर्टिकल संसद में पास हो गया था | इसे भारतीय संविधान के सबसे अंत में जोड़ दिया गया था |  इसके फेस पर भी लिखा है “जम्मू और कश्मीर राज्य के लिए अस्थायी प्रावधान” |  Article 370 और 35- A भारतीय संविधान के 21वें भाग का 370 वाँ आर्टिकल है |

21 में भाग को बनाया ही अस्थायी प्रावधानों के लिए गया था ,  ताकि से बाद में हटाया जा सके | इस आर्टिकल के तीन सेक्शंस थे | इसके तीसरे सेक्शन में लिखा है कि भारत का राष्ट्रपति जम्मू कश्मीर की संविधान समिति की सलाह से आर्टिकल 370 को खत्म कर सकता था | हालांकि अब संविधान सभा नहीं रही, तो ऐसे में राष्ट्रपति की आज्ञा लेने की भी कोई जरूरत नहीं थी |

जब कोई आर्टिकल या सेक्शन को अस्थायी समय के लिए बनाया जाता है तो उसको सीज करने या हटाने की प्रक्रिया के बारे में भी लिखा जाता है |  उसमें लिखा गया है, जब जम्मू कश्मीर में लोगों की लाइफ नॉर्मल हो जाएगी तो इसे हटाया जा सकता था |

यहां समझने वाली बात यह है कि इसे संसद लेकर आई थी और वही इसे हटा भी सकती थी |  इसे जम्मू कश्मीर की विधानसभा या राजा लेकर नहीं आए थे | और इसीलिए वे इसे हटा भी नहीं सकते थे | ये सेक्शन इसलिए लाया गया था क्योंकि उस समय पाकिस्तान की जनता पलायन करके हमारे क्षेत्र में आ रही थी |

दोस्तों कश्मीर और आर्टिकल 370 के बारे में जब भी बात होती है तो दिल्ली समझौते के बारे में बात करना भी जरूरी हो जाता है | दिल्ली समझौते 1952 में शेख अब्दुल्ला और पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच हुआ था | शेख अब्दुल्ला जम्मू और कश्मीर की  रियासती राज्य  के पहले चुने हुए प्रधान मंत्री थे |

इस समझौते में जम्मू कश्मीर में लोगों के लिए भारत की नागरिकता दे दी गई थी | यानी वहाँ के लोग भी  भी भारत के नागरिक मान लिए गए थे | 1952 के दिल्ली समझौते के बाद ही 1954 का विवादित कानून Article 370 और 35- Aजोड़ा गया |  इसके बाद ही जम्मू कश्मीर का संविधान 1956 में बनाया गया |

1954 में भारत के राष्ट्रपति की तरफ से एक आदेश पास किया गया था | इस आदेश के जरिए जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान के आधार प्रावधानों को लागू किए जाने थे,  लेकिन उन्होंने राज्य  को अलग से एक कानूनी आज्ञा दे दिया था |

ऐसा आदेश जो संविधान की मूल भारत के विरुद्ध था | दरअसल किसी भी राष्ट्रपति को भारतीय संविधान में कोई सेक्शन जोड़ने या नया कानून बनाने की आज्ञा नहीं होती है | लेकिन ऐसा कहा जाता है कि डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने राज्य को विशेष अधिकार देने के लिए एक आर्डर पास किया था |

यह आर्डर ही आर्टिकल 370 और 35-A था | यह एक ऐसा आर्टिकल है जिसे बनाने का अधिकार देश के राष्ट्रपति  के पास नहीं था | उनके पास यह अधिकार था कि वह जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान के बाकी प्रावधानों को लागू करवाएँ |  14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के आदेश पर भारतीय संविधान में आर्टिकल 35- A जोड़ा गया था |

आर्टिकल जम्मू कश्मीर को राज्य के रूप में विशेष अधिकार  देता था | इसके तहत दिए गए स्थानीय निवासियों से जुड़े हुए थे | इसका मतलब यह था कि राज्य को यह अधिकार है कि वे आजादी के वक्त दूसरी जगह से आए शरणार्थियों और अन्य भारतीयों को जम्मू कश्मीर में किसी तरह की सहूलियत दे अथवा नहीं | माना जाता है कि प्रधान मंत्री नेहरू ने न तो यह आर्टिकल कैबिनेट में पास कराया और ना ही इसका संविधान में कोई जिक्र है | लेकिन फिर भी यह बाद में संविधान में जोड़ दिया गया था |

दोस्तों अब तक हमने जाना कि किन परिस्थितियों में जम्मू कश्मीर में  विवादित कानून की शुरुआत हुई | अब हम अगले एपिसोड  बात करेंगे कि  इन दोनों आर्टिकल्स के जरिए जम्मू कश्मीर के लोगों को क्या विशेष अधिकार दिए गए थे ?  Article 370 क्यों लाना पड़ा इसके बारे में जानना चाहते है तो हमारा ये ब्लॉग पोस्ट अवश्य पढे : ऐसी क्या समस्या थी कि जम्मू कश्मीर मे Article 370 लाना पड़ा |

 


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