जम्मू और कश्मीर का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: एक गहन दृष्टि

जम्मू और कश्मीर, जो कि आज एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा है, का ऐतिहासिक संदर्भ काफी जटिल और दिलचस्प है। यह क्षेत्र विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक समूहों का मिलाजुला केंद्र रहा है। इस लेख में, हम जम्मू और कश्मीर के इतिहास के उन महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देंगे, जो इसके वर्तमान स्थिति को समझने में मदद करेंगे।

प्राचीन काल से पहले
1815 से पहले, जम्मू और कश्मीर क्षेत्र 22 छोटे स्वतंत्र राज्यों में विभाजित था, जिनमें 16 हिंदू और 6 मुस्लिम राज्य शामिल थे। ये राज्य अफगानिस्तान के अमीर के अधीन थे और स्थानीय छोटे शासकों के द्वारा शासित थे। इन्हें सामूहिक रूप से “पंजाब हिल स्टेट्स” के रूप में जाना जाता था। ये छोटे राज्य राजपूत राजाओं द्वारा शासित थे और ये कभी स्वतंत्र, कभी मुग़ल साम्राज्य के अधीन और कभी-कभी कांगड़ा राज्य द्वारा नियंत्रित होते थे। मुगलों के पतन के बाद, कांगड़ा में अशांति और गोर्खाओं के आक्रमण के कारण, ये पहाड़ी राज्य अंततः सिखों के नियंत्रण में आ गए।

सिख साम्राज्य और कश्मीर
सिख साम्राज्य के अंतर्गत कश्मीर का महत्व बढ़ा। 1845-46 में पहले एंग्लो-सिख युद्ध के दौरान, सिख साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच संघर्ष हुआ। इस युद्ध के परिणामस्वरूप 1846 के लाहौर संधि में सिखों को कश्मीर को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। इस संधि के तहत, सिखों को जुल्लुंदर दोआब (बीस नदी और सतलज नदी के बीच का क्षेत्र) को समर्पित करना पड़ा और 1.2 मिलियन रुपए का हर्जाना चुकाना पड़ा।

गुलाब सिंह का उदय
क्योंकि सिखों ने इतनी बड़ी राशि एकत्र करना संभव नहीं समझा, इसलिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने डोगरा शासक गुलाब सिंह को कश्मीर हासिल करने की अनुमति दी। गुलाब सिंह ने सिख साम्राज्य से कश्मीर को प्राप्त करने के लिए 750,000 रुपए का भुगतान किया। इस प्रकार, गुलाब सिंह जम्मू और कश्मीर के नए राज्य के पहले महाराजा बने, जिसने 1947 में भारत की स्वतंत्रता तक शासन किया।

डोगरा राजवंश का प्रभाव
गुलाब सिंह ने डोगरा राजवंश की नींव रखी, जिसने जम्मू और कश्मीर का शासन संभाला। इस राजवंश के अंतर्गत, जम्मू और कश्मीर एक महत्वपूर्ण और समृद्ध क्षेत्र बन गया, जो न केवल सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता था, बल्कि इसकी प्राकृतिक सुंदरता और संसाधनों के लिए भी प्रसिद्ध था।

आधुनिक संदर्भ
 इसका इतिहास न केवल इसकी सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है, बल्कि यह राजनीतिक संघर्षों का भी केंद्र रहा है। 1947 में भारत के विभाजन के समय, जम्मू और कश्मीर एक महत्वपूर्ण विवाद का विषय बना। इस क्षेत्र के अधिकांश मुस्लिम जनसंख्या ने पाकिस्तान के साथ जुड़ने की इच्छा व्यक्त की, जबकि महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय का निर्णय लिया।

और पढे –भारतीय-पाकिस्तानी युद्ध 1947-1948: एक ऐतिहासिक विश्लेषण 


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