दोस्तों URI attack के दूसरे भाग मे हम जानेंगे कि आतंकवादियों का अगला कदम क्या था , तो चलिए शुरू करते है | आतंकियों के हाथ से, जब वह यात्रियों से भरी हुई बस निकल गई, तो उन्होंने अपना रुख सीधा दीनानगर पुलिस स्टेशन की तरफ कर लिया, दीनानगर पुलिस स्टेशन आते वक्त रास्ते में जितने भी मकान और दुकान मिली, उन सब के ऊपर गोलियां चलाते आए | दीनानगर पुलिस स्टेशन पहुंच कर आतंकियों ने अपनी गाड़ी छोड़ दी और दीवार से कूद कर, धीरे से पुलिस स्टेशन में दाखिल हो गए |
सुबह का समय था, इसलिए कुछ पुलिस के जवान सो रहे थे | कुछ अपनी ड्यूटी बदल रहे थे | उन्होंने आतंकियों को आता हुआ, नहीं देखा | इसी बात का फायदा, उन आतंकियों को हुआ | आतंकी दीनानगर पुलिस स्टेशन पहुंचने के बाद एक सुरक्षित जगह ढूंढने लगे, जहां से वह छुप कर, हमारे जवानों के ऊपर गोलियां बरसा सके |
जब उन्हें उचित जगह मिल गई, तब उन्होंने अपने घिनौने कार्य का प्रदर्शन शुरू किया | आतंकियों ने ए के -47 राइफल से हमारे जवानों के ऊपर अंधा – धुंध फायरिंग करना शुरू कर दिया | थाने में अफरा – तफरी का माहौल हो गया | उसे थाने के कैंपस में बने पुलिस क्वार्टर में कुछ पुलिसवाले अपने परिवार के साथ रह रहे थे |
इसलिए उनके परिवार के लोगों को सुरक्षित निकालना बहुत जरूरी हो गया था | पुलिस काफी मशक्कत के बाद कुछ पुलिस और उनके परिवार वालों को वहां से सुरक्षित निकालने में कामयाब हुई | अब पुलिस के सामने दो चुनौतियां थीं, जिनका सामना करना इतना आसान नहीं था |
गोलियां चारों तरफ से चल रही थी | आतंकवादी कितने हैं ? और कहां-कहां छुपे हैं ? इसका सही-सही पता नहीं चल पा रहा था | आतंकियों के हाथ में थी ए के -47 और पुलिस के हाथ में साधारण राइफल | आतंकी बुलेट प्रूफ जैकेट, ग्रेनेड तथा अलग-अलग हथियार के साथ आए हुए थे |
लेकिन पुलिस अपनी वर्दी और अपनी साधारण राइफल के साथ बिना किसी सुरक्षा के आतंकियों के सामने डटी हुई थी | पुलिस के एक जवान ने अद्भुत वीरता दिखाते हुए अपनी साधारण राइफल से उन आतंकियों को करारा जवाब दिया लेकिन आतंकियों ने अपने ए के – 47 राइफल से उस जवान को शहीद कर दिया | पुलिस स्टेशन में पुलिस आतंकवादी हमले की बात बहुत जल्द ही जंगल में आज की तरफ फैल गई | बड़े-बड़े अधिकारी अब थाने की तरफ आने लगे | जिसमें गुरदासपुर के एसपी बलजीत सिंह जी भी थे |
बलजीत सिंह जी इस हमले से डेढ़ महीने पहले ही प्रमोशन पाकर एस पी बने थे | सुबह जब दीनानगर पुलिस स्टेशन पर हमले की बात उन तक पहुंची, तो वह फौरन पुलिस स्टेशन के लिए निकल गए | पुलिस स्टेशन पहुँच कर उन्होंने पूरी जाँबाजी के साथ आतंकवादियों का सामना किया | उन्होंने पुलिस के जवानों से कहा मैं इन्हें यहां से खदेड़ कर ही दम लूंगा | तुम लोग हमला जारी रखो, लेकिन तभी एक गोली एस पी बलजीत सिंह जी के सिर में लगी | वे शहीद हो गए | उनके साथ ही हमारे तीन पुलिस के जवान भी शहीद हो गए |
आतंकवादियों की सही संख्या, उनकी सही लोकेशन जानना, स्थानीय पुलिस के लिए मुश्किल हो रहा था | इसलिए अब यहां से मोर्चा हमारे आर्मी के जवान, पंजाब पुलिस के कमांडो और एन एस जी की स्थानीय टीम ने संभाला |एन एस जी को यह पता चला कि आतंकवादियों ने पुलिस थाने में पुलिस के हथियारों पर भी अपना कब्जा कर रखा है | वे पुलिस थाने की मोटी – मोटी दीवारों के पीछे छिपे हुए हैं | उनका सही लोकेशन और उनकी संख्या एन एस जी और आर्मी के जवानों ने पता किया | फिर उन्होंने अपना ऑपरेशन शुरू किया |
आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ लगभग 11 घंटे तक चली | 11 घंटे बाद आखिरकार हमारे जवानों को सफलता हाथ लग ही गई | उन्होंने उन आतंकियों को उनके असली अंजाम तक पहुंचा दिया | इसके बाद जब इन आतंकियों की तलाशी ली गई, तो पता चला कि इन आतंकियों के पास जो हथियार है |
वह हमारे दुश्मन देशों द्वारा इन्हें दिए गए हैं | जैसे – चीनी ग्रेनाइट्स, पाकिस्तान एक-47 और साथ ही साथ उनके पास कुछ ड्राई फ्रूट्स भी थे | आतंकियों के पास से मिले इस सामान से यह साफ पता चलता है कि किस तरीके से हमारे दो पड़ोसी दुश्मन देश, हमारे देश में शांति फैलाने और हमारे देश को खंडित करने में लगे हुए हैं |
वे दोनों जानते हैं कि अगर वे एक बहादुर की तरह सामने से लड़ेंगे, तो उन्हें हमेशा मुंह की खानी पड़ेगी | इसलिए वह हमारे देश में अशांति फैलाने के लिए आतंक का सहारा लेते हैं | इन आतंकियों को मार दिया गया था | लेकिन फिर भी अभी खतरा टला नहीं था |
दीनानगर से 5 किलोमीटर दूर, रेल की पटरी पर पांच जिंदा बम लगे हुए थे | ये बम इतने खतरनाक थे कि न सिर्फ रेल की पटरी, बल्कि ट्रेन को भी उड़ने के लिए काफी थे | उस समय पटरी का मुआयना कर रहे, एक रेल कर्मचारियों की नजर उन बमों पर पड़ती है |
वह इसकी खबर फौरन अपने सीनियर अधिकारी को देता है | ठीक इसी समय दीनानगर से पठानकोट की तरफ जाने वाली पैसेंजर ट्रेन भी उसी पटरी से गुजर रही होती है | अधिकारी तुरंत ट्रेन को रोकने का आदेश देते हैं | ट्रेन को रोका जाता है | ट्रेन बम से महज 50 मीटर की दूरी पर आकर रूकती है | इससे हजारों यात्रियों की जान बच जाती है, लोगों की जान तो बच गई |
लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर उन बमों को रेल पटरी पर रखा किसने ? क्या उन्ही आतंकियों ने उन बमों को रखा था जिन्होंने पुलिस स्टेशन पर हमला किया था ? क्या उन आतंकवादियों के साथ कोई और भी मिला हुआ था ? जो अभी तक पुलिस की पहुंच से बाहर था | सवाल बहुत सारे थे | लेकिन इनका जवाब अभी पुलिस और सुरक्षा एजेंसी को ढूंढना बाकी था |
यह ट्रेन पठानकोट जा रही थी, जिसे हमारी सुरक्षा बलों द्वारा बचा लिया गया | लेकिन क्या पठानकोट से खतरा टल गया था ? क्या फिर पठान कोट पर कोई नया हमला होने वाला था ? और यह हमला किस तरीके से हमें URI पर होने वाले हमले की तरफ इशारा करता है ? जानने के लिए जुड़ें रहे |
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