यह बात तो हम सभी जानते हैं, 5 अगस्त 2019 में जब भारत के गृह मंत्री ने जम्मू कश्मीर से Article 370 को हटाने की घोषणा की थी, तो पूरा विपक्ष और उसके साथ ही कई देशों ने भी अपनी नाराजगी जाहीर की थी | लेकिन भारत के ज्यादातर लोगों ने इसका समर्थन किया था |
इसे कश्मीर की आजादी बताया जा रहा था | और ऐसा कहा जा रहा था कि इसके बाद फिर से कश्मीर की घाटी से अमन और शांति का संदेश आएगा | आर्टिकल 370 और 35a को हटाने की बात करने से पहले इन दोनों के ही बारे में विस्तार पूर्वक में बात करना बहुत जरूरी होगा |
मार्च 1948 की बात है, उस समय महाराजा हरि सिंह ने शेख अब्दुल्ला के साथ प्रधान मंत्री के रूप में राज्य में एक अंतरिम सरकार नियुक्त की थी | जुलाई 1949 में शेख अब्दुल्ला और उनके तीन अन्य सहयोगी भारतीय संविधान कमेटी में शामिल हुए थे | और जम्मू कश्मीर की विशेष परिस्थिति पर बहुत लंबा बहस किया था |
इसके बाद आर्टिकल 370 को स्वीकार किया गया था | एक विवादास्पद प्रावधान शेख अब्दुल्ला ने ही तैयार किया था | पूरे देश में भारतीय संविधान को 26 जनवरी 1950 में लागू किया गया था | लेकिन उस वक्त कश्मीर की परिस्थिति ऐसी नहीं थी | इसलिए वहां कई तरह के बदलाव किए गए | नवंबर 1956 में संविधान को लेकर काम पूरा हो गया था | इसके बाद अगले साल 26 जनवरी 1957 को जम्मू कश्मीर का संविधान लागू किया गया था |
दोस्तों, अब तक हमने बात की किन स्थितियों में जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 370 और 35a को जोड़ा गया | अब हम बात करेंगे कि आखिर इनके जोड़ने के बाद जम्मू कश्मीर की धरती और यहां के लोगों के जीवन में क्या में बदलाव आए ? इसके लिए हमें सबसे पहले आर्टिकल 370 के बारे में विस्तार पूर्वक में बात करनी होगी | तो चलिए जानते हैं इस आर्टिकल की कुछ महत्त्वपूर्ण बाते |
दोस्तों आर्टिकल 370 के नियमों के अनुसार संसद में जम्मू कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के बारे में कानून बनाने का अधिकार था | लेकिन किसी दूसरे विषय से जुड़े कानून लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार से इजाजत लेनी पड़ती थी | इसी विशेष कानून के कारण जम्मू कश्मीर पर आर्टिकल 356 लागू नहीं होती थी |
भारत के राष्ट्रपति के पास वहां के संविधान को खारिज करने का अधिकार नहीं था | 1976 का शहरी भूमि कानून राज्य पर लागू नहीं होता था | भारत के दूसरे राज्य के लोग जम्मू में जमीन नहीं खरीद सकते थे | भारतीय संविधान का अनुच्छेद 360 के तहत देश में वित्तीय आपात काल लगाने का प्रावधान है, लेकिन यह जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होता था |
जम्मू कश्मीर के नागरिक दोहरी नागरिकता भारत और कश्मीर दोनों की नागरिकता रखते थे | जम्मू कश्मीर का झण्डा भी अलग था | जम्मू कश्मीर की विधान सभा का कार्यकाल 6 साल का होता था | जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधान सभा का कार्यकाल पांच साल का होता है | सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेश जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होते थे |
आर्टिकल 370 की वजह से कश्मीर में आर टी आई और आर टी ई लागू नहीं होता था | कश्मीर में हिंदू सिख अल्पसंख्यक को 16% रिजर्वेशन नहीं मिलता था | कश्मीर में पंचायतों को किसी तरह के अधिकार नहीं थे | जम्मू कश्मीर की कोई महिला अगर भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जाएगी |
इसके उल्टा अगर जम्मू कश्मीर की कोई महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी कर ले, तो उस पाकिस्तानी को भी जम्मू कश्मीर की नागरिकता मिल जाएगी | जम्मू कश्मीर के नागरिकों को भारत के राष्ट्रीय तिरंगा , राष्ट्रीय प्रतीक का सम्मान करना जरूरी नहीं था |
वहीं आर्टिकल 35a के जरिए जम्मू कश्मीर के स्थायी नागरिकता के कानून और नागरिकों के अधिकार निश्चित किये जाते थे | जैसे इस प्रावधान के अनुसार 14 मई 1954 या इससे पहले 10 सालों से जम्मू कश्मीर में रहने वालों और वहां प्रॉपर्टी हासिल करनेवालों को ही जम्मू कश्मीर का स्थायी नागरिक बताया गया था |
इन स्थायी नागरिकों को को विशेष अधिकार भी दिए गए थे | सिर्फ स्थायी नागरिकों को को ही वहां जमीन खरीदने सरकारी नौकरी, सरकारी सुविधावों का फायदा मिलता था | बाहरी लोगों को वहां जमीन खरीदने, सरकारी नौकरी, सरकारी संस्था में एडमिशन लेने का अधिकार नहीं था |
अगर जम्मू कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी दूसरे राज्य के किसी व्यक्ति से शादी कर लेती थी, तो उसकी अपनी पैतृक संपत्ति पर से अधिकार खत्म हो जाता था, लेकिन पुरुषों के मामले में ऐसा नहीं था |
वैसे आर्टिकल 370 में समय के साथ कई बदलाव भी हुए | 1965 तक वहां राज्यपाल और मुख्यमंत्री नहीं होते थे | उनकी जगह सदर ए रियासत और प्रधान मंत्री होते थे | इसे बाद में बदल गया था | ऐसा माना जाता है कि आर्टिकल 370 की आड़ में देश में बंटवारे के समय में बड़ी संख्या में लोग पाकिस्तान से आए थे | उन्हे जम्मू कश्मीर की नागरिकता दे दी गई थी, लेकिन हिंदू और सिखों को नागरिकता नहीं दी गई थी |
ऐसा भी माना जाता है कि आर्टिकल 35a एक ही वजह से वहां हिंदू और मुसलमानों में भेद भाव किया जाता था | 1989 तक जम्मू कश्मीर में परिस्थितियाँ थोड़ी ठीक थी | लेकिन जब राज्य तेजी से विकसित होने लगा, और स्टेट में पर्यटन भी बढ़ने लगा था, तब 1990 में कश्मीर की शांति खत्म होने लगी थी | दिलों को सुकून देने वाली वादियों से दिल दहला देने वाली तस्वीर आने लगी थी | कश्मीर में आतंक का साया मंडराने लगा था |
ऐसा माना जाता है कि वहां कट्टरपंथियों ने और राजनीतिज्ञों ने डर और अशांति बनाए रखी, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि कश्मीर से आर्टिकल 370 और 35a को हटाया जाए | कश्मीर की वादियां फिर से शांति और अमन की दास्तान सुनाएं इसलिए आर्टिकल 370 और 35a को हटाया गया था |
हमारे अगले एपिसोड में बात करेंगे इसी बारे में कि जब जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया गया था तो देश में कैसे हालात बने थे ? और किस स्तर पर सारी तैयारियां की गई थी ? और अधिक जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें : कश्मीर में आर्टिकल 370 और 35- ए का जन्म |
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